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कविता

प्रियतर शब्द

ए. अरविंदाक्षन


धरती के तमाम पेड़
आकाश के तमाम पक्षी
बादल
हवा
और समुद्र
एक साथ शोर-शराबे में लगे हैं।
ध्वनियों की गूढ़ वक्रताओं
अट्टहासों के बलात्कारों ने
हमारी श्रवण शक्ति को समाप्त कर दिया है
हमारे प्रिय शब्द
मर्मर
सन्नाटा
ध्वनि-स्वप्न बन
स्मृतियों के क्षितिजों में विलीन हो गये हैं।

 


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हिंदी समय में ए. अरविंदाक्षन की रचनाएँ